h3.post-title, .comments h4 { font-family: 'Ek Mukta', Regular; font-size: 28px; } वसंत !तुम आना जरूर!! - मराठी विश्व

वसंत !तुम आना जरूर!!

मेरे जिस्मसे पाता मै,
कभी जुगनुओंसे दाने;
          कभी चमकीले,कभी अंधियारे

इन दानोंको बो देता हूं,
जिस्मकी मु्ठ्ठीभर माटीमें;
          सोचकर यह की..

पौधे उगेंगे कभी चांदनीके,
मेरेही अपने जिस्मपर;
          यह सोचना कितना सरल है..

जितना वैशाखसे लिपटे कायाको,
वसंतका आभास देना;
          कितने वसंत बीत जाते है..

इस कायाको जुगनुसा लुभाकर,
लेकीन वसंत! मैं तुम्हें जुगनुओंमें;
          नही चांदनीमें चाहता हुं...

तुम चांदनीमें आओगे भी, लेकीन,
मेरी प्रतीक्षा करती आंखेही;
          ’पथ’ बन चुकी होगी..

हाथ क्या आयेगा तब अधःकार के,
धागोंको सिमटकर सुर्य बुनते;
          भूतकाल स्मृति के अलावा..

कितने ऋतू आते है, जाते है,
मैं उन्हें रोक नही सकता;
          लेकीन वसंत !तुम आना जरूर!!
Share on Google Plus

About Mridagandh

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.

0 comments:

Post a Comment