h3.post-title, .comments h4 { font-family: 'Ek Mukta', Regular; font-size: 28px; } दर्द एक गाँव का - मराठी विश्व

दर्द एक गाँव का

क्या हो गया है इस गांव को
उपेक्षित हो गयी अमराई
नदीका बहता जल सिमट कर
बन गया गतिहीन बाँध
चंदन के वृक्ष काट दिए गए हैं
बबूलों की जगह फ़ैल गयी है बेह्याकी बाड
जहांसे निकलते है हरे साँप
गांव के स्मशान पर बैठी है
एक गमगीन बुढिया,
जिसके झुर्रीदार चेहरे पर
शेष है अभी दो नम लकीरें
शायद कूछ देर पहले
बही होंगी दर्द्की दो नदियां
जिसे पहचानकर भी नही
पहचानते है इस गाँवके सयाने लोग
और जब पालतू कुत्ते
जिनके गलोमें पडें है विदेशी पट्टे
बुढिया को देखकर भूंकते हैं
तो यही सयाने बजाते है खुश होकर
अपने घिनौने हाथोंसे तालियां,
जब भी करता हूं अपने गांवके
दर्द को समझाने की कोशीश
मढ दिया जाता है मुझपर
आवारगी या फ़िरका परस्ती का विशेषण
गांव या बुढिया की कुशल क्षेम पूछना
मान लिया गया एक अपराध
जब मैं करता हूं कोशीश
दोनोंके दर्द को ओंटोंपर लाने की
मेरी आवाज को दबाने का
जी-तोड उपाय करते हैं
ये भूंकनेवाले पट्टेदार कुत्ते.
Share on Google Plus

About Mridagandh

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.

0 comments:

Post a Comment